बुधवार, 27 जनवरी 2016

Ishq Ke Shole Ko Bhadakaao Ke Kuchh Raat Kate

Ishq Ke Shole Ko Bhadakaao Ke Kuchh Raat Kate
Dil Ke Angaar Ko Dahakaao Ke Kuchh Raat Kate

Hijr Men Milane Shab-e-maah Ke Gam Aaye Hai.n
Chaaraasaazon Ko Bhii Bulavaao Ke Kuchh Raat Kate

Chashm-o-rukhsar Ke Azagaar Ko Jaarii Rakho
Pyaar Ke Nagme Ko Doharaao Ke Kuchh Raat Kate

Koh-e-gam Aur Garaan Aur Garaan Aur Garaan
Gamzaa-o-tesh Ko Chamakaao Ke Kuchh Raat Kate
TV Series: Kahkashan
Lyrics: Makhdoom Mohiuddin
Singer: Jagjit Singh
इश्क़ के शोले को भड़काओ कि कुछ रात कटे,
दिल के अंगारे को दहकाओ कि कुछ रात कटे;
हिज्र में मिलने शब-ए-माह के ग़म आए हैं, (शब-ए-माह = चांदनी रात)
चारासाज़ों को भी बुलवाओ कि कुछ  रात कटे; (चारासाज़ = चिकित्सक)
चश्म-ओ-रुख़सार के अज़कार को जारी रखो, (चश्म-ओ-रुख़सार = आँखों और गालों), (अज़कार = चर्चायें)
प्यार के नग़मे को दोहराओ कि कुछ रात कटे;
कोह-ए-ग़म और गराँ और गराँ और गराँ, (कोह-ए-ग़म = दुःख का पहाड़, गराँ = भारी)
ग़मज़दों तेशे को चमकाओ कि कुछ रात कटे; (तेशे = तलवार)
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कोई जलता ही नहीं कोई पिघलता ही नहीं
मोम बन जाओ पिघल जाओ कि कुछ रात कटे
आज हो जाने दो हर एक को बद्-मस्त-ओ-ख़राब
आज एक एक को पिलवाओ कि कुछ रात कटे
TV धारावाहिक: कहकशाँ
शायर: मख़्दूम मोइउद्दीन

गायक: जगजीत सिंह
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2 टिप्‍पणियां:

  1. एक प्रश्न है, मैने एक ग़ज़ल लिखी है जिसमे रदीफ और काफिया का इस्तेमाल किया है लेकिन बहर का कुछ अता पता नहीं है तो इसे क्या कहेंगे ग़ज़ल या कविता ?

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