मंगलवार, 31 जनवरी 2017

Woh Khat Ke Purze Uda Raha Tha



Woh Khat Ke Purje Uda Raha Tha
Hawavon Ka Roop Dikha Raha Tha

Kuch Aur Bhi Ho Gaya Numaayan
Main Apna Likha Mita Raha Tha

Usi Ka Eemaan Badal Gaya Hai
Kabhi Jo Mera Khuda Raha Tha

Wo Ek Din Ek Ajnabi Ko
Meri Kahani Suna Raha Tha

Wo Umr Kam Kar Raha Tha Meri
Main Saal Apne Badha Raha Tha
Album: MARASIM
Singers: Jagjit Singh
Poet: Gulzar
वो ख़त के पुर्ज़े उड़ा रहा था;
हवाओं का रुख़ दिखा रहा था!
कुछ और भी हो गया नुमायाँ;
मैं अपना लिक्खा मिटा रहा था!
उसी का ईमाँ बदल गया है;
कभी जो मेरा ख़ुदा रहा था!
वो एक दिन एक अजनबी को;
मेरी कहानी सुना रहा था!
वो उम्र कम कर रहा था मेरी;
मैं साल अपने बढ़ा रहा था!
बताऊँ कैसे वो बहता दरिया;
जब आ रहा था तो जा रहा था!
धुआँ धुआँ हो गई थी आँखें;
चराग़ को जब बुझा रहा था!
मुंडेर से झुक के चाँद कल भी;
पड़ोसियों को जगा रहा था!
ख़ुदा की शायद रज़ा हो इसमें;
तुम्हारा जो फ़ैसला रहा था!
एल्बम: मरासिम
गायक: जगजीत सिंह
शायर: गुलज़ार
Watch/Listen on youtube: Pictorial Presentation

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