गुरुवार, 2 फ़रवरी 2017

Ye Na Thee Hamaaree Qismat Ke Wisaal-e-yaar Hota


Tere Waade Par Jiye Ham To Ye Jaan Jhoot Jaanaa
Ke Khushee Se Mar Na Jaate Agar 'eitabaar Hota

Ye Na Thee Hamaaree Qismat Ke Wisaal-e-yaar Hota
Agar Aur Jeete Rehte Yahee Intezaar Hota

Ye Kahaan Ki Dostee Hai Ke Bane Hain Dost Naaseh
Koee Chaarasaaz Hota, Koee Ghamgusaar Hota

Kahoon Kis Se Main Ke Kya Hai, Shab-e-gham Buree Bala Hai
Mujhe Kya Bura Tha Marna ? Agar Ek Baar Hota
Album: Mirza Ghalib
Singers: Chitra Singh
Lyricist: Mirza Ghalib
ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होता;
अगर और जीते रहते यही इंतिज़ार होता!

तिरे वादे पर जिए हम तो ये जान झूट जाना;
कि ख़ुशी से मर न जाते अगर ए'तिबार होता!

तिरी नाज़ुकी से जाना कि बँधा था अहद बोदा;
कभी तू न तोड़ सकता अगर उस्तुवार होता!

कोई मेरे दिल से पूछे तिरे तीर-ए-नीम-कश को;
ये ख़लिश कहाँ से होती जो जिगर के पार होता!

ये कहाँ की दोस्ती है कि बने हैं दोस्त नासेह;
कोई चारासाज़ होता कोई ग़म-गुसार होता!

रग-ए-संग से टपकता वो लहू कि फिर न थमता;
जिसे ग़म समझ रहे हो ये अगर शरार होता!

ग़म अगरचे जाँ-गुसिल है प कहाँ बचें कि दिल है;
ग़म-ए-इश्क़ गर न होता ग़म-ए-रोज़गार होता!

कहूँ किस से मैं कि क्या है शब-ए-ग़म बुरी बला है;
मुझे क्या बुरा था मरना अगर एक बार होता!

हुए मर के हम जो रुस्वा हुए क्यूँ न ग़र्क़-ए-दरिया;
न कभी जनाज़ा उठता न कहीं मज़ार होता!

उसे कौन देख सकता कि यगाना है वो यकता;
जो दुई की बू भी होती तो कहीं दो-चार होता!

ये मसाईल-ए-तसव्वुफ़ ये तिरा बयान 'ग़ालिब';
तुझे हम वली समझते जो न बादा-ख़्वार होता!
एल्बम: मिर्ज़ा ग़ालिब
गायक: चित्रा सिंह
शायर: मिर्ज़ा ग़ालिब
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