बुधवार, 17 मई 2017

Ab Ke Barsaat Ki Rut Aur Bhi Bhadkili Hai


Ab Ke Barsaat Ki Rut Aur Bhi Bhadkili Hai
Jishm Se Aag Nikalti Hai, Kaban Gili Hai

Sonchta Hoon Ke Ab Anjaam-e-safar Kya Hoga
Log Bhi Kaanch Ke Hain, Raah Bhi Pathrili Hai

Pehle Rag-rag Se Meri Khoon Nichoda Us'sne
Ab Ye Kehtha Hai Ke Rangat Hi Meri Peelee Hai

Mujhko Be-rang Hi Na Karde Kahin Rang Itne
Sabz Mausam Hai, Hawa Surkh, Fizaan Gili Hai
Album: SOMEONE SOMEWHERE
Singers: Chitra Singh
Lyricist: Muzaffar Warsi
अब के बरसात की रुत और भी भड़कीली है
जिस्म से आग निकलती है, क़बा गीली है

सोचता हूँ के अब अंजाम-ए-सफ़र क्या होगा
लोग भी काँच के हैं, राह भी पथरीली है

शिद्दत-ए-कर्ब में तो हँसना कर्ब है मेरा
हाथ ही सख़्त हैं ज़ंजीर कहाँ ढीली है

गर्द आँखों में सही दाग़ तो चेहरे पे नहीं
लफ़्ज़ धुँधले हैं मगर फ़िक्र तो चमकीली है

घोल देता है सम'अत में वो मीठा लहजा
किसको मालूम के ये क़िंद भी ज़हरीली है

पहले रग-रग से मेरी ख़ून निचोड़ा उसने
अब ये कहता है के रंगत ही मेरी पीली है

मुझको बे-रंग ही न करदे कहीं रंग इतने
सब्ज़ मौसम है, हवा सुर्ख़, फ़िज़ा नीली है

मेरी परवाज़ किसी को नहीं भाती तो न भाये
क्या करूँ ज़हन 'मुज़फ़्फ़र' मेरा जिबरीली है
एल्बम: समवन समव्हेयर
गायक: चित्रा सिंह
शायर: मुज़फ़्फ़र वारसी
Watch/Listen on youtube: Pictorial Presentation

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें