Shola Hoon Bhadakne Ki Guzaarish Nahin Karta
Sach Muuh Se Nikal Jaata Hai Koshish Nahin Karta
Girati Huyi Diwaar Ka Humdard Hoon Lekin
Chadhate Huye Sooraj Ki Parasthish Nahin Karta
Maathe Ke Paseene Ki Mahak Aaye Na Jaisi
Wo Khoon Mere Jism Mein Gardish Nahin Karta
Humdard Ye Ehbaab Se Darta Hoon 'muzaffar'
Main Zakhm To Rakhta Hoon Numaish Nahin Karta
Jo Bhii Bichha.de Hai.n Kab Mile Hain "faraz"
Phir Bhii Tuu Intazaar Kar Shaayad
Lyrics: Mujaffar Warsi
शोला हूँ भड़कने की गुजारिश नहीं करता
सच मुँह से निकल जाता हैं कोशिश नहीं करता
गिरती हुई दीवार का हमदर्द हूँ लेकिन
चढ़ते हुए सूरज की परस्तिश नहीं करता
माथे के पसीने की महक आये ना जिस से
वो खून मेरे जिस्म में गर्दिश नहीं करता
हमदर्दी-ए-एहबाब से डरता हूँ मुज़फ्फर
मैं जख्म तो रखता हूँ नुमाईश नहीं करता
सच मुँह से निकल जाता हैं कोशिश नहीं करता
गिरती हुई दीवार का हमदर्द हूँ लेकिन
चढ़ते हुए सूरज की परस्तिश नहीं करता
माथे के पसीने की महक आये ना जिस से
वो खून मेरे जिस्म में गर्दिश नहीं करता
हमदर्दी-ए-एहबाब से डरता हूँ मुज़फ्फर
मैं जख्म तो रखता हूँ नुमाईश नहीं करता
शायर: मुजफ्फर वारसी
*****Also in:
Album: Echoes (1986)
An Evening with Jagjit Singh
Listen/watch on Youtube:
Jagjit Singh
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